भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 6

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(26)
विभीषण-शरणागति

जाय माय पायँ परि कथा सो सुनाई है |
समाधान करति बिभीषनको बार बार,
"कहा भयो तात! लात मारे, बड़ो भाई है ||

साहिब, पितु समान, जातुधानको तिलक,
ताके अपमान तेरी बड़िए बड़ाई है |
गरत गलानि जानि, सनमानि सिख देति,
"रोष किये तोष, सहें समुझें भलाई है ||

इहाँतें बिमुख भयें, रामकी सरन गए
भलो नेकु, लोक राखे निपट निकाई है |
मातु-पग सीस नाइ, तुलसी असीस पाइ
चले भले सगुन, कहत "मन भाइ है ||