भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
(32)
बिनती सुनि प्रभु प्रमुदित भए |
रीछराज, कपिराज नील-नल बोलि बालिनन्दन लए ||
बूझिये कहा? रजाइ पाइ नय-धरम सहित ऊतर दए |
बली बन्धु ताको जेहि बिमोह-बस बैर-बीज बरबस बए ||
बाँहपगार द्वार तेरे तैं सभय न कबहूँ फिरि गए |
तुलसी असरन-सरन स्वामिके बिरद बिराजत नित नए ||