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गीता-सी या कुर्आन-सी उम्दा किताब बन / अजय अज्ञात
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गीता-सी या कुर्आन-सी उम्दा किताब बन
बन कुछ भी ज़िंदगी में मगर लाजवाब बन
जुगनू नहीं चिराग या फिर आफताब बन
तारीकियों में नूर का तू इंकलाब बन
हाथों पे हाथ धर के न तक़दीर आजमा
तदबीर की बिसात पर तू कामयाब बन
नापाक बद नज़र से बचा कर शबाब को
पर्दे में रह के हुस्न का तू माहताब बन
‘अज्ञात' ग़मे-हयात के काँटों के बीच तू
खुशबू बिखेरता हुआ दिलकश गुलाब बन