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गीत — चान्दनी और चान्द / जगदीश गुप्त

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रच दिया पथ ज्योति के आवर्तनों से चान्द ने ।
रात की वेणी किरन की उँगलियों से खोलकर
बान्ध अपने को लिया अनगिन घनों से चान्द ने ।


                     ‘याद है वह नीबुओं की साँवली छाया घनी ?’
                     ओस की सुकुमार बून्दों से भरी पलकें उठा,
                     आसमानी चान्द से कहती कपूरी चान्दनी ।