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गुदगुदाती है ठंड हमें और हँसता है अंधेरा / ओसिप मंदेलश्ताम
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नाद्या मंदेलश्ताम के लिए
गुदगुदाती है ठंड हमें और हँसता है अँधेरा
भला मानूँ कैसे यह कि कथन तेरा अनूठा
काट रहा है मुझे अब समय का यह सरौता
जैसे काटता है पैर को ऊँची ऐड़ी का जूता
धीरे-धीरे गुम हो रहा दूर हो रहा जीवन
धीमी गति से पिघल रहे हैं उसके सब स्वर
कोई बात है कमी लगे है जिसकी ख़ूब सघन
जिसे याद कर मन को मेरे कष्ट होता अक्सर
बेहतर था पहले, सुन्दर था, हमारा यह जीवन
आज से उसकी ज़रा भी तुलना नहीं है कोई
तब प्रिया! पंछी-सा तेरा फड़फड़ाता था मन
अब रक्त लरज़ता है हमारे बदन में ललौंही
मुझे लगे यह, सजनी! कि बेकार नहीं गया
हमारे इन फड़फड़ाते होंठॊं का कम्पन
निरुद्देश्य भटक रहे हैं वे मरणोन्मुख सारे
इस नए-नकोर शासन के उन्मत्त नेतागण
रचनाकाल : 1922