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गुमसुम सी है हवा गगन भी डरा हुआ है / रंजना वर्मा

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गुमसुम सी है हवा गगन भी डरा हुआ है
सहमी सहमी साँसें हैं मन भरा हुआ है

बरसे हों न भले ही बादल इस धरती पर
सावन के अंधों को तो सब हरा हुआ है

प्यार मिला इतना हम जिस में अब तक डूबे
तुम हो साथ नहीं इस से मन मरा हुआ है

जो भी मिला सहेज लिया स् को जी भर कर
खोने का अफसोस न हम को जरा हुआ है

कैसे भी हालात रहें जीना ही होगा
ठोकर खा कर ही तो जीवन खरा हुआ है

कौन संभालेगा यदि सुख की साँस मिली तो
कन्धे पर जब दुख का पहिया धरा हुआ है

चार दिनों के लिये बहारें आयीं चल दीं
पतझर आया पत्ता पत्ता झरा हुआ है