भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गैस सिलेण्डर / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गैस सिलेण्डर कितना प्यारा ।
मम्मी की आँखों का तारा ।।
 
रेगूलेटर अच्छा लाना ।
सही ढंग से इसे लगाना ।।

गैस सिलेण्डर है वरदान ।
यह रसोई-घर की है शान ।।

दूघ पकाओ, चाय बनाओ ।
मनचाहे पकवान बनाओ ।।

बिजली अगर नही है घर में ।
यह प्रकाश देता पल भर में ।।

बाथरूम में इसे लगाओ ।
गर्म-गर्म पानी से नहाओ ।।

बीत गया है वक़्त पुराना ।
अब आया है नया ज़माना ।।

जंगल से लकड़ी मत लाना ।
बड़ा सहज है गैस जलाना ।।

किन्तु सुरक्षा को अपनाना ।
इसे कार में नही लगाना ।