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गोकुल में अंधियारे ही हैं / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

ऊधो मानो
गोकुल में अंधियारे ही हैं
 
मथुरा में होंगे उजियारे
क्योंकि वहाँ राजा रहते हैं
कभी-कभी उन उजियारों की
चकाचौंध हम भी सहते हैं
 
यहाँ हमें
दिन में भी दिखते तारे ही हैं
 
सदियों पहले कान्हा के सँग
धूप-चाँदनी सभी सिधाये
तबसे फिरते यहाँ रात-दिन
मानुष-ढोर सभी पथराये
 
ताल-तलैया
झील-नदी सब खारे ही हैं
 
नदी-पार से लाये तुम फ़रमान
सुनहरी नई भोर के
हम तो खोज रहे हैं अब भी
सिरे अमावस इस अछोर के
 
ऊधो, अपने
सपने भी तो कारे ही हैं