गो-द्विज-रक्षा-हेतु राम ने लिया दिव्य मानव-अवतार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग भैरव-ताल कहरवा)
गो-द्विज-रक्षा-हेतु रामने लिया दिव्य मानव-अवतार।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु यज्ञकी रक्षा की बन पहरेदार॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु किया उस शिला-अहल्याका उद्धार।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु प्रड्डुञ्ल्लित-मन, वन-गमन किया स्वीकार॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु लिया श्रीसीता-लक्ष्मणको निज साथ।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु तपस्वी बन वन-वन बिचरे रघुनाथ॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु कराया सीता-हरण असुरके हाथ।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु बँधाया पत्थर-पुल रोका निधि-पाथ॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु किया रघुबरने लंका-दुर्ग-प्रवेश।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु किया दुर्धर्ष असुर-दलको निःशेष॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु इन्द्रजित-रावनका कर जीवन शेष।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु बनाया भक्त विभीषणको लङङ्केश॥
गो-द्विज-रक्षा-हेतु मिटाकर अनाचार सब अत्याचार।
गो-द्विज-रक्षा-हेतु विविध शुचि मर्यादाका कर विस्तार॥