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घिर के आख़िर आज बरसी है घटा बरसात की / हसरत मोहानी

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घिर के आख़िर आज बरसी है घटा बरसात की
मैकदों में कब से होती थी दुआ बरसात की

मूजब-ए-सोज़-ओ- सुरूर-ओ-बायस-ए-ऐश-ओ-निशात<ref >आह्लाद का स्रोत,तथा सुख का कारण</ref>
ताज़गी बख़्श-ए-दिल-ओ-जाँ <ref >दिल और जान को ताज़गी देने वाली </ref>है हवा बरसात की

शाम-ए-सर्मा<ref >सर्दियों की संध्या</ref> दिलरुबा<ref >प्रिय</ref> था, सुबह-ए-गर्मा<ref > गर्मियों की सुबह</ref> ख़ुशनुमा<ref >मधुर</ref>
दिलरुबा तर, खुशनुमा तर<ref > और भी आनंददायक तथा और भी तरो-ताज़ा करने वाली</ref> है फ़ज़ा बरसात की

गर्मी-ओ-सर्दी के मिट जाते हैं सब जिससे मर्ज़
लाल लाल एक ऐसी निकली है दवा बरसात की

सुर्ख़ पोशिश <ref >जामुनी रंग की पोशाक </ref>पर है ज़र्द-ओ-सब्ज़<ref >सुनहरे और हरे </ref> बूटों की बहार
क्यों न हों रंगीनियाँ तुझपर फ़िदा बरसात की

देखने वाले हुए जाते हैं पामाल-ए-हवस
देखकर छब तेरी ऐ रंगीं अदा बरसात की

शब्दार्थ
<references/>