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घुज्ज अन्धरिया ला देला / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
तीन रंग के तहमल तरे
बइठल गहुमन पोवा
प्रजातंत्र के लगा मुखौटा
मार रहल हे चोभा
नाच-कूद के बड़ फइलइलक
अपन ज्ञान के झोली
छियासठ बरिस से बुझा रहल हे
जन-जन के ई पहेली
छिलकोइया पर
खा-खा अपने खोवा
दुन्नूं पंजा जोड़ के कइसन
ई अरदास लगइले हे
कुरसी पाके बेशरमी से
दुन्नूं अँगुठा देखइले हे
बुझलूं हल हम तोहरा गंगा
निकलला तू गमकल डोबा
निमरा जन के
आ-आ करि के
कइसन ढनमना देला
इंजोरिया के आशा दे-दे
घुज्ज अन्हरिया ला देला
मेहनकश तरेंगन ताके
तूं फांकऽ हा घी के मोवा।