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घुटन ही घुटन है शहरे-ए-वतन में / ईश्वर करुण

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घुटन ही घुटन है शहर –ए -वतन में
लगी पलने दहशत हर एक जेहन में ।

हवा को मनाही है गुल से न खेले
हुए हुक्मराँ खार अब हर चमन में ।

चटकने की बंदिश लगी हर कली पे
है घेरा अंगारों का इस अंजुमन में ।

हो बुलबुल के खूं से मेरी ताजपोशी
ये ख्वाहिश है जंगल के राजा के मन में ।

दुआ तो हुई कैद वर्के-लोगद 1 में
दवा है नमक आज मजर्रे- जलन में ।

सियासत हुई आज मुफलिस की बेटी
उठा ले गया जिसने चाहा भवन में ।

नीलामी कलम की न होने दो ‘ईश्वर’
बचा एक कतरा जो खूं है बदन में ।