और उसी की याद में जीता रहा।
संगदिल की बात मुझसे पूछ मत,
प्राण का यह घट सदा रीता रहा।
जान की परवाह करना क्यों भला,
वक्ते-ग़म मेरा सदा मीता रहा।
बेरुखी सबकी मुझे मीठी लगी,
काम अपनों का सदा तीता रहा।
है निछावर प्राण तुमपे ऐ वतन,
हौसला मेरा सदा चीता रहा।