भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घूँट आँसू के सदा पीता रहा / मृदुला झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और उसी की याद में जीता रहा।

संगदिल की बात मुझसे पूछ मत,
प्राण का यह घट सदा रीता रहा।

जान की परवाह करना क्यों भला,
वक्ते-ग़म मेरा सदा मीता रहा।

बेरुखी सबकी मुझे मीठी लगी,
काम अपनों का सदा तीता रहा।

है निछावर प्राण तुमपे ऐ वतन,
हौसला मेरा सदा चीता रहा।