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चँदमयी चम्पक जराव जरकस मयी / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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चँदमयी चम्पक जराव जरकस मयी ,
आवत ही गैल वाके कमलमयी भई ।
कालिदास मोहमद आनँद बिनोदमयी ,
लालरँग मयी भयी बसुधा मई ,
ऎसी बनि बानिक सोँ मदन छकाई ,
रसकहि की निकाई लखि लगन लगी नई ।
नेह को हितै करि गोपाल मोह दैकरि ,
सखीन दुचितै करि चितै करि चली गई ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।