चंचल चंचल चिङिया चहकी मन उपवन प्रभात मै / विरेन सांवङिया
चंचल चंचल चिङिया चहकी मन उपवन प्रभात मै।
साल सोलवे सामण के सी होई गुदगुदी गात मै॥
चार चाँद से कट्ठे लिङके चार दिशा तै एक साथ मै।
कागज का एक टूकङा ले कै बैठी जब वा हाथ मै॥
थी घोटेदार चुनरिया ओढी खास किस्म की घणी प्यारी।
ढाल-2 के फूल जङे थे करी अपणे हाथ कलाकरी।
चाँद तारे भी फिके होगे खोगे सब उस रात मै॥
सेल्ली दिखै माङी माङी माथे पै बिंदी ला री।
पलक झूका कै निचे नै नई बहू सी शरमारी।
लाज शरम मै लाल हुई वा खोई थी किसे बात मै॥
कंगन गूट्ठी कंठी पहैरी रंग था पीला दामण का।
सादी भोली निर्मल काया रूप लगै थी बामण का।
सात रंग सतरंगी स्याही जणूँ भरी शीशे की दवात मै॥
होंठ गुलाबी पंखुडियों से महैंदी मै हाथ रचाए थे।
देबी सी उणीयार से सुथरे नैन नक्स भी पाए थे।
सांवङिया कहै पढया करै थी वा मेरी ऐ जमात मै॥