भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में ।
डूब गए कुछ लोग मुख़्तसर<ref>बहुत कम या संक्षिप्त</ref> पानी में ।

किरदारों ने अपनी क़ीमत माँगी है,
यही हुआ है अक्सर मेरी कहानी में ।

कभी ना पहुँचे ताबीरों की बस्ती में,
सपने टूटे नींदों की निगरानी में ।

कुछ तो हमको अपनी ज़िद ही ले बैठी,
कुछ तुम भी मशगूल रहे मनमानी में ।

तुमने तो आसान रास्ता दिखा दिया,
कितनी मुश्किल मिली मगर आसानी में ।

जिसको चाहा शिद्दत से महसूस किया,
नहीं मोहब्बत हमने की नादानी में ।

जिनको बहारें रास ना आईं क्या जानें,
कितने हम ख़ुशहाल रहे वीरानी में ।

शब्दार्थ
<references/>