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चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में ।
डूब गए कुछ लोग मुख़्तसर<ref>बहुत कम या संक्षिप्त</ref> पानी में ।
किरदारों ने अपनी क़ीमत माँगी है,
यही हुआ है अक्सर मेरी कहानी में ।
कभी ना पहुँचे ताबीरों की बस्ती में,
सपने टूटे नींदों की निगरानी में ।
कुछ तो हमको अपनी ज़िद ही ले बैठी,
कुछ तुम भी मशगूल रहे मनमानी में ।
तुमने तो आसान रास्ता दिखा दिया,
कितनी मुश्किल मिली मगर आसानी में ।
जिसको चाहा शिद्दत से महसूस किया,
नहीं मोहब्बत हमने की नादानी में ।
जिनको बहारें रास ना आईं क्या जानें,
कितने हम ख़ुशहाल रहे वीरानी में ।
शब्दार्थ
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