चरण रज शीतला माँ की धरा को नापते देखा / रंजना वर्मा
चरण रज शीतला माँ की धरा को नापते देखा
हमेशा नीम के नीचे हिंडोला झूलते देखा
पुकारे जब कभी सन्तान माँ दौड़ी चली आती
कभी भी पीर सन्तति की न उन को भूलते देखा
करूँ वन्दन चरण में और स्वागत मंदिरों में हो
सदा चहुँ ओर जय जयकार माँ की गूँजते देखा
हृदय का ताप हर लेतीं सतत कल्याण करती हैं
सदा माँ के नयन आश्वासनों को फूलते देखा
कृपा की बूंद बरसाती सदा उत्थान हैं करतीं
उसी की भक्ति में है सज्जनों को झूमते देखा
नियंत्रित कर रही सबको सभी का ध्यान रखती है
धुरी है माँ सितारों सा सभी को घूमते देखा
सतत करुणामयी है माँ अघों के सैन्य को हर पल
उसी की शक्ति के आगे बिलखते काँपते देखा
चरण की धूल दे कर भी रिझा लेती हैं' जगदम्बा
सदा पद - पीठिका में भक्त - जन को लोटते देखा
निरन्तर हो वरण माँ का वही अनुपम शरण सब की
चरण में जो गिरा माँ के न उस को हारते देखा