चल सोवे चमन साक़ी सरमाया गुलाबी
ईमाए क़दह नोशी ग़ुंचे की गुलाबी है
ऐ अबर-ए-मज़ा रहमत क्या शिद्दत-ए-बारां है
अफ़लाक का उन रोज़ों जो बरज है आबी है
ऐ आफियत अंदेशो क्या क़सर बनाते हो
आग़ाज़-ए-इमारत का अंजाम ख़राबी है
है कौन जो यहां आ के दो दिन को नहीं भटका
मय खान-ए-आलम में जो है सौ शराबी है
क्या शायर-ए-शैतानी फिक्र अपनी करें आली
हर मिस्रा गर अपना इक तीर शहाबी है