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चाँद-चाँदनी आबोॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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चाँद चाँदनी आबोॅ
आपनोॅ कथा सुनाबोॅ।

दुसरा केॅ दूसै सेॅ
आपनोॅ दोष छुड़ाबोॅ।

गाछ सिनी मुरझैलोॅ
पानी मिली पटाबोॅ।

झौं-झौं करबोॅ छोड़ोॅ
झुम्मर-झुमटा गाबोॅ?

एक अकेल्लोॅ झुट्ठा
माथोॅ मिली मिलाबोॅ?

खाँसी छौं तेॅ रोकोॅ
नैं कि गला दबाबोॅ।

सब पंडित, छौं यैठां
सब लुग सरे नबाबोॅ।

फूलोॅ सें की लड़बोॅ
पत्थल सें टकराबोॅ।

सबके फूल केॅ नोचोॅ
अपनोॅ रोआं बचाबोॅ।

वंश-जात नै पूछोॅ
जब भी नेह लगाबोॅ।

एक्के ‘सारस्वत’ छै
सहतौं सब बिन्डोबोॅ।