चारपाई की दुकान / ब्रजेश कृष्ण
मेरे घर के पास नुक्कड़ पर आज एक उदास स्त्री ने
चारपाई बिछा कर खोली है दुकान
चारपाई पर फैला दी हैं उसने
सुइयाँ, बटन, खिलौने, बीड़ी-सिगरेट
या ऐसी ही कुछ थोड़ी सी चीज़ें
पति के मारे जाने के बाद
वह बैठेगी यहाँ आज से सारा दिन
चुटकी भर नमक और मुट्ठी भर चून के इन्तज़ार में
यह क़तई कोई संयोग नहीं कि
इसी शहर में आज खोली गई है एक और दुकान
मैं जानता हूँ कि रिटेल स्टोर्स की
इस भव्य और शनदार कड़ी को दुकन कहना हिमाक़त है
मगर मैं इतना बताना चाहता हूँ
कि हज़ारों चीज़ों के साथ यहाँ बिकेगा नमक और चून भी
सवाल यह है
कि तेज़ भागती हुई सड़क के पास
चारपाई पर बिछी यह दुकान कब तक टिकी रह जायेगी
सवाल यह भी है
कि पत्नी को जन्मदिन पर
ढाई सौ करोड़ का जहाज देने वाले शाहजहाँ की
दुकान का नमक और चून
कब और कैसे पहुँचेगा इस स्त्री के पास
जिसे इसकी सख़्त ज़रूरत है
आज और अभी।