चाहे हामनै सारी दुनिया रोकती रहे, / दयाचंद मायना
चाहे हामनै सारी दुनियां रोकती रहे,
हर ठोड़ पै और मोड़ पै, हर रोड पै
या पागल पब्लिक भौंकती रहे...टेक
खून की होली खेले थे हाम, जलियाँ आले बाग म्हं
इतना सुन्दर समो सावना, आया ना किसे फाग म्हं
वीर भगत सिंह फाँसी टूटे, मरगे इस बैराग म्हं
या मृत्यु बैरण फूंस आग म्हं झोंकती रहे...
बूट और पेटी, जराब, जांघिया, ऊपर पेटी सरकारी
ऊनी कम्बल, माच्छरदानी, रफल जान की प्यारी
चलो सूरमा रणभूमि में, नैफा की करलो त्यारी
या भारत माता पीठ हमारी, ठोकती रहे...
झण्डे नीचै कसम उठाओ, मनुष्य धर्म और दीन की
मेरे शहजादो, खून बहा दो, आस छोड़दो जीन की
चीज अनूठी मृत्यु बूटी, असल दवाई पीन की
देख-देख कै फौज चीन की, चौकती रहे...
कह ‘दयाचन्द’ मरणा आच्छा रणभूमि म्हं वीरां का
सबकी खातिर वक्त एक ना, सवाल, गरीब, अमीरां का
छोटे तै लेकर बड़े तक, राजा और वजीरां का
या चिन्ता बैरण खून शरीर का सोखती रहे...