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चिड़ीमार / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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जब काका हल-बैल लेकर
चले जायेंगे खेत की ओर
वे आयेंगे
और टिड्डियों की तरह पसर जायेंगे
रात के गहराते घुप्प अंधरे में
आयेगी पिछवारे से कोई चीख
वे आयेंगे
और पूरा गांव पफौजी छावनी में बदल जायेगा
खरीदेंगे पिता जब बाजार से
खाद की बोरियां
वे आयेंगे
बोरियों से निकलकर सहज ही
और हमारे सपने एक-एक कर टूट बिखर जायेंगे
वे आ सकते हैं
कभी भी
सांझ-सवेरे
रात-बिरात
वे आयेंगे
तो बुहार के जायेंगे हमारी खुशियां
हमारे ख्वाब
हमारी नींदें
वे आयेंगे
तो सहम जायेगा जायेगा नीम का पेड़
वे आयेंगे
तो भागने लगेंगी गिलहरियां
पूंछ दबाये
वे आएँगे
तो निचोड़ ले जायेंगे
तेरे भीतर का गीलापन भी
कभी देखोगे
पिफर आयेंगे चिड़ीमार
और पकड़ ले जायेंगे कचबचिया चिरैयों को
जो पफुदक रही होंगी डालियों पर।