चुप्पी / ब्रजेश कृष्ण
पिता को जब आता था गुस्सा
तो वे चले जाते थे चुप्पी में चुपचाप
उनकी किसी भी दहाड़ से
अधिक बोती थी उनकी चुप्पी
वह उनके वक़्त का अपना तरीक़ा था
मैं खि़लाफ़ हूँ इसके
और तोड़ना चाहता हूँ अपने समय की चुप्पी
अभी-अभी मारे गये आदमी की चीख़
टँगी है हवा में
और चारों ओर छाई है चुप्पी
किसी के खि़लाफ़ नहीं आती
कहीं से कोई आवाज़
मैं इस बदहवास चुप्पी से परेशान हूँ
अक्सर लोग दिखाई देते हैं
बीच में बैठे हुए
अहम मुद्दे पर राय के वक़्त
सुनाई देती है सिर्फ एक चुप्पी
मैं इस चालाक चुप्पी से परेशान हूँ
हमारे समय की यह कैसी सच्चाई है
कि जलाई गई स्त्री
नहीं देना चाहती कोई बयान
मैं इस डरी और सहमी हुई
चुप्पी से परेशान हूँ
रहस्यों में सबसे बड़ा
रहस्य कहा गया है चुप्पी
मैं अपने समय के इस ख़तरनाक़
रहस्य से परेशान हूँ।