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चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ / 'शहपर' रसूल
Kavita Kosh से
चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ
और किसी दिन तो परेशान भी हो जाता हूँ
सीधा रस्ता हूँ मगर मुझ से गुज़रना मुश्किल
गुमराहों के लिए आसान भी हो जाता हूँ
फ़ाएदा मुझ को शराफ़त का भी मिल जाता है
पर कभी बाइस-ए-नुक़सान भी हो जाता हूँ
अपने ही ज़िक्र को सुनता हूँ हरीफ़ों की तरह
अपने ही नाम से अंजान भी हो जाता हूँ
रौनकें-ए-शहर बसा लेती हैं मुझ में अपना
आन की आन में सुनसान भी हो जाता हूँ
ज़िंदगी है तो बदल लेती है करवट ‘शहपर’
आदमी हूँ कभी हैवान भी हो जाता हूँ