भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप तो किसी भी बात पर रहते नहीं हैं हम / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चुप तो किसी भी बात पर रहते नहीं हैं हम
ऐसा ही कुछ है पर जिसे कहते नहीं हैं हम

छूटे हैं जब से आपकी पलकों की छाँह से
पल भर कहीं भी चैन से रहते नहीं हैं हम

किश्ती भँवर में छोड़ दें, डाँड़ों को तोड़ दें
तेवर, ऐ ज़िन्दगी तेरे सहते नहीं हैं हम

लोगों ने बात-बात में हमको दिया उछाल
शायर तो अपने आप को कहते नहीं हैं हम

एक शोख़ की नज़र ने खिलाये हैं ये गुलाब
यों ही हवा की तान पे बहते नहीं हैं हम