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चेहराए-यार से नक़ाब उठा / हसरत मोहानी
Kavita Kosh से
चेहराए-यार से नक़ाब उठा
दिल से इक शोरे-इज़्तराब<ref>तड़प का शोर</ref> उठा
रात पीरे-मुगाँ<ref>शराबख़ाने का मालिक या प्रियतम</ref> की महफ़िल से
जो उठा मस्त उठा ख़राब उठा
हम थे बेबाक और वह महजूब<ref>शरमाए हुए</ref>
शब, ग़रज़, लुत्फ़ बे-हिसाब उठा अपार
मस्ते-सहबाए-शौक़<ref>प्रेम-मदिरा का मतवाला</ref> है ’हसरत’
हमनशीं<ref>दोस्त</ref> सागरे-शराब उठा
शब्दार्थ
<references/>