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छाँव में बैठ के शाख़ों से शरारत करना / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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छाँव में बैठ के शाख़ों से शरारत करना ।
हमने सीखा है परिन्दों से मुहब्बत करना ।
हम दरख़्तों को बुज़ुर्गों की तरह रखते हैं,
हमको आता है फ़क़ीरों की भी सोहबत करना ।
अपना ईमान बचाने के लिए करना पड़ा,
वरना मुश्किल से ख़लीफ़ों की ख़िलाफ़त करना ।
चाहे दुनिया से हमें शिकवे मिले लाख मगर,
माँ ने सिखलाया नहीं हमको शिकायत करना ।
नींद काग़ज़ की तरह हमने बना ली अपनी,
आ गया हमको भी ख़्वाबों की ख़िताबत करना ।
हमने रिश्तों में कभी क़ैद ना काटी होती,
हम भी गर जानते कुनबे से बग़ावत करना ।
जान जोख़िम में है उन जलते हुए दीयों की,
सोच कर दोस्त हवाओं की वक़ालत करना ।