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छाता / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
कारोॅ-कारोॅ छाता छै
सबके प्यारोॅ छाता छै ।
गर्मी के, बरसातोॅ के
जेना हँकारोॅ छाता छै ।
जहाँ मिलौं पड़पड़िया धूप
वहीं पुकारोॅ-छाता छै ?
ऊ की भिंजतै बरसा मंे
जेकरा ठारोॅ छाता छै ।
छत्तीस ठोॅ केॅ त्राण वहीं
जहाँ अठारोॅ छाता छै ।
छतरी नै बीहा करतै
भले कुमारोॅ छाता छै ।