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छूट जायेगा तेरी दुनिया का ये मैख़ाना आज / सिया सचदेव
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छूट जायेगा तेरी दुनिया का ये मैख़ाना आज
क्या मेरी हस्ती का भर जायेगा ये पैमाना आज
जब सुना महफ़िल में आया है मेरा जाने-बह़ार
वज्द में फिर आ गया है ये दिल-ए-दीवाना आज
घर की दीवारों ने सुन ली है जो दिल की दास्तां
देख लेना बन के निकलेगी यही अफ़साना आज
शाम से जलता है दिल बुझता नहीं वक्ते-सहर
आह भी है बेअसर दिल है बहुत वीराना आज
कल की कालिख के हैं कुछ धब्बे तेरे किरदार पर
अब समझ पाई हूँ मैं तुझको भी है समझाना आज
चारसूं कोई नहीं है नूरे-यज्दाँ के सिवा
खोल कर तो देख लो दिल का मेरे तहखाना आज