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ज’रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं / पवन कुमार

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ज’रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं
सलामत आईने रहते हैं चेहरे टूट जाते हैं

पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में
बहुत बेबाक होते हैं तो रिश्ते टूट जाते हैं

दिखाते ही नहीं जो मुद्दतों तिश्नालबी अपनी
सुबू के सामने आकर वो प्यासे टूट जाते हैं

किसी कमजोर की मज’बूत से चाहत यही देगी
कि मौजें सिर्फ’ छूती हैं, किनारे टूट जाते हैं

यही इक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पां है
ज़रूरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं

गुज़ारिश अब बुजुर्गों से यही करना मुनासिब है
जि’यादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं

मौजें = लहरें, चस्पां = चिपका हुआ