भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जंगल-जंगल होल अमंगल / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
कउआ घर डेढ़ कउआ घुसलइ
चूहा घर बिलाय
केकरो ठउर ठेकाना न´ हे
विपत सगर मड़राल
उलुआ हाथ में एसएलआर
तित्तिर सेमियाँ धइलक
ऊपरे सुटकल बाज बेचारा
सीटी मुर्गा देलक
लोभी लोमड़ी
रूप बदल के
दक्खिन भागल जाय
स्टेनगन भलुआ लेलक
बनरा करबाइन धइलक
बाघ बेचारा
मान में दुबकल
भुखले कुछ न´ खइलक
एके छप्पन हुड़रा तानल
देलकइ तड़तड़ाय
जंगल-जंगल
होल अमंगल
मचलइ चीख-पुकार
सभे जीव
जोखिम में घिरलइ
न´ उवार न हार
बड़ी जोर से
चिड़कल बदरा
उतपतियन भागल जाय।