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जंगल में / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
गूँथा जा रहा
आटे की तरह
पहाड़
फेंटे जा रहे
दूध दही की तरह
प्रपात
जंगल में
बारिश जो हो रही
प्यार की !!