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जगह और समय के बीच / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
‘‘हजारवीं बार एक ही छत पर पहुचंने
वाले आदमी की चाल हो सकती है
अभ्यासवश, कई गुना तेज, सीढ़ियों पर
पहली बार पग धरते आदमी के मुकाबिले,
पर बचे हुए समय में नहीं उगायी जा
सकती एक और सीढ़ी ऊपर की ओर
अवकाश में, न बढ़ाया जा सकता विस्तार
छत का, जब कि, धीरे-धीरे धीमी चाल वाला
अनभ्यस्त वह दूसरा भी पहुंच ही लेता है
उसी छत पर कुछ देर बाद। बेशक, जगहों की
तलाश में खर्च होता है समय, जिसके लिए
जरूरी है बचत समय की और समय की
बचत के लिए सीढ़ी पार करने में चाल बढ़ा
देने का अभ्यास, परन्तु, समय का विस्तार नहीं
बदला जा सकता जगह के आयतन में। जगह
की जगह चाहिए जगह। केवल जगह। समय
के समय चाहिए समय। केवल समय।’’