जग जाणै अम्बर का थूक्या / दयाचंद मायना
जग जाणै अम्बर का थूक्या, मुँह पै पड्या करै
कम कूत, ऊत पै जूत पड़ै, जब नक्सा झड्या करै...टेक
ऊपर नै थूक्या करते, यूरोपियन घणे ऊत
एक हिन्दके दो टूक बणा ग्या, वो चर्चिल साला दूत
बातां तै ना मान्या करते, लातां आले भूत
उठा पूछड़ा भगे, लगे जब जय हिन्द आले जूत
हक, कायदे, कानून, पैंच तै, यो भारत लड्या करै...
एक हांडी के बीच पेट दो, राक्षस बना गए
अपने मुख से आप-पाप का बतला पना गए
गऊओं नै काटण आले मुस्लिम खुद हो फना गए
बम्बई छोड़ कराची जा मर, मिस्टर जिन्हा गए
या सदी चौदहवीं नास करै, जिस घर म्हं बड्या करै...
रहा सींच धर्म की बेल, पाप के बरवे छांगै था
पकड़ा गया गनीम, हिन्द की जो सीम उलांघै था
हैदराबाद निजाम तख्त दिल्ली का मांगै था
वो काश्ब रजबी, लाल किले पै झण्डा टांगै था
कैद कोठड़ी म्हं पड्या-पड्या, इसा पापी सड्या करै...
कदे-कदे के दिन बड़े, कदे की बड़ी रात
कदे-कदे याड़ै राज करै थी, गोर्यां की पंच्यात
गांधी, बोस, पटेल के, गुण गाओ सारी रात
यो भारत देश आजाद कराया, काट-काट हवालात
बख्त-बख्त की बात, ‘दयाचन्द’ साची घड्या करै...