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जज़्ब-ए-कामिल को असर अपना दिखा देना था / हसरत मोहानी
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जज़्ब-ए-कामिल को असर अपना दिखा देना था
मेरे पहलू में उन्हें ला के बिठा देना था
कुछ तो देना था तेरे तघाफुल का जवाब
या खुदा बन के तुझे दिल से भुला देना था
तेर-ए-जाँ के सिवा किसको बनाते क़ासिद
उस सितम गर को पैग़ाम-ए-क़ज़ा देना था
दर्द मोहताज-ए-दावा हो ये सितम है या रब
जब दिया था तो कुछ इस से भी सवा देना था
वो जो बिगाड़े तो ख़फा तुम भी हुए क्यों "हसरत"
पा-ए-नकुव्वत पे सर-ए-शौक़ झुका देना था