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जन—कथाओं के नायक बनें / जहीर कुरैशी
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जन-कथाओं के नायक बनें
‘राम’ खुशबू-से व्यापक बनें
मनचली तितलियों के लिए
फूल ही सिर्फ चुंबक बनें
यार, कितना मज़ा आएगा—
हम भी बच्चों की गुल्लक बनें !
जो स्वयं रह न पाए सचेत
आज वे भी सचेतक बनें
उसने मिट्टी के बर्तन गढ़े
हम भी शेरों के सर्जक बनें
मंच के मोह को त्याग कर
आप भी आम-दर्शक बनें !
जिसने मुश्किल में दी प्रेरणा
लोग उसके प्रशंसक बनें.