भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जबहि रघुपति सँग सीय चली।/ तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(10)

जबहि रघुपति-सँग सीय चली |

बिकल-बियोग लोग-पुरतिय कहैं ,अति अन्याउ, अली ||

कोउ कहै, मनिगन तजत काँच लगि, करत न भूप भली |

कोउ कहै, कुल-कुबेलि कैकेयी दुख-बिष-फलनि फली ||

एक कहैं, बन जोग जानकी बिधि बड़ बिषम बली |

तुलसी कुलिसहुकी कठोरता तेहि दिन दलकि दली ||