भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब जी उदास होता है / मृदुला झा
Kavita Kosh से
कविता के पास होता है।
तन की थकान मिटती है,
मन में उजास होता है।
उठती जभी कलम अपनी,
वह आस-पास होता है।
उससे निगाह मिलते ही,
ग़म बदहवास होता है।
सारा जहान अपना हो,
मिलकर प्रयास होता है।
नीयत बुरी नहीं अपनी,
सबमें समास होता है।
मिल-जुल रहें, ‘मृदुल’ हम सब,
सबका विकास होता है।