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जब नज़र उस ने मिलाई होगी / 'रशीद' रामपुरी

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जब नज़र उस ने मिलाई होगी
लब पे आलम के दुहाई होगी

उन की बे-वजह बुराई होगी
मुँह से निकली तो पराई होगी

वो मुझ देखने आते हम-दम
तू ने कुछ बात बनाई होगी

माँगता हूँ जो दुआ-ए-वहशत
हसरत-ए-आबला-पाई होगी

इश्क़ में और दिल-ए-ज़ार की क़द्र
ज़ब्त ने बात बढ़ाई होगी

आए दिन की तो ये रंजिश ठहरी
किस तरह उन से सफ़ाई होगी

दिल ‘रशीद’ उन से लगाया भी तो क्या
न बुराई न भलाई होगी