भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब बीड़ी से धुवाँ उठेगा / केशव शरण
Kavita Kosh से
चित्रात्मकता का अप्रतिम प्रतिमान
रक्तिम लपटॊं में घिरा
शाम का आसमान
पर वे इसका आनन्द नहीं उठा सकते
तलब है बीड़ी की
जिसे वे उन लपटॊं से नहीं जला सकते
माचिस की डिबिया भूल आए हैं
यह ध्यान तब आया है
जब नदी के कूल आए हैं
लपटों से घिरे चित्रमय आसमान से
उनका मन तभी जुड़ेगा
जब उनकी बीड़ी से धुवाँ उठेगा