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जब मैं नहीं रहूँगी इस अंजुमन में तेरे / मृदुला झा
Kavita Kosh से
फिर भी तू याद करना नित साँझ और सवेरे।
मैं बंद आँख से भी दीदार कर रहा हूँ
तुम को भुला सकूँ मैं बस में नहीं है मेरे।
होगा कभी न ऐसा हम दूर-दूर होंगे,
तुमको जकड़ ही लेंगे इन गेसुओं के फेरे।
क़ातिल है ये ज़माना कहीं मार ही न डाले,
आओ चलें कहीं हम ढूँढें नए बसेरे।
हर ओर दिख रहे हैं बरबादियों के मंजर,
दीपक बुझा हुआ है चारों तरफ अंधेरे।