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जब रात हो अँधेरी हर ओर तम हो काला / रंजना वर्मा
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जब रात हो घनेरी हर ओर तम हो काला।
नन्हा प्रदीप जल कर देता सदा उजाला॥
घन श्याम घिर रहे हों बरसा रहे हों' पानी
तब कौंधता हृदय में विभु रूप है निराला॥
वह पुण्य भूमि प्यारी जन्मा जहाँ कन्हैया
है धर्म भूमि वह भी जिसने था उसे पाला॥
बस एक दृष्टि से ही दुनियाँ को फँसा लेता
मकड़ी के सदृश ही तो यह मोह का है जाला॥
हर ओर पीर पलती सब में अतृप्ति गहरी
इनको पिला दे कोई जीवन सुधा का प्याला॥
आयी विपद है जब भी श्रीकृष्ण के जनों पर
धाये पदाति मोहन हर भक्त को सँभाला॥
हर ओर बेकली है मनुजत्व नष्ट होता
अब आ भी' श्यामसुंदर पहना सुखों की माला॥