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जब हम तुम मिले-1 / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
तैराक को
बहुत--
बहुत दिनों के बाद--
कोई लहर-वती नदी
या दर्पण-पानी वाला गहरा तालाब
मिले
और वह
पहले तो मुग्ध-लुब्ध देखे तो देखता ही रहे
और धीरे-धीरे कपड़े उतारे-- धीरे-धीरे पानी में उतरे--
और आँखें मूंद
महसूस करे-- पानी का सुहाता पानीपन और
नस-नस का परिचित खुलना--
और
जब आँखें खोले तो सुख को साकार देखे--
और देखे-- दूर... और दूर होता किनारा--
- और बहुत
बहुत थक चुकने के बाद ही
अजनबी हो चुके अपने शरीर से
पुनर्पहचान करॆ-- और उसे साथ लिए-लिए
किनारे की और लौटे-- कुछ इस तरह!
(रचनाकाल : 03.04.1977)