भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जमाना ही चोर है / धनपत सिंह
Kavita Kosh से
जमाना ही चोर है, पक्षी-पाखेरू क्या ढोर है
कोये-कोये चोर है जग म्हं लीलो आने और दो आने का
जवाहर का चोर है कोय, कोय है चोर खजाने का
जिसी चोरी करै उसी बोर है
चोरी करे बिना लीलो इस जग म्हं कोण रहया जा सै
कोये अन्ना का चोर कोये धन का चोर, कोये दिल का चोर कहया जा सै
दिल चौरी नैं सहज्या कमजोर है
काळा चोर कोये मुसकी चोर, कोये गौरा चोर कहया जा सै
ये छोहरी चोर घणी होती, कोई छोरा चोर कहया जा सै
किसे की दबज्या किसै का शोर है
कोये-कोये चोर लगे दुश्मन कोये प्यारा भी होगा
तूं हमनैं चोर बणावै सै, कोये चोर हमारा भी होगा
कहै ‘धनपत सिंह’ लीलो मछोर है