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जम्हाई की ज़रूरत / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
विश्वविद्यालय का प्रोफे़सर
समाचार वाचक की उच्चारण शुद्धता
और वर्षों के अभ्यास से अर्जित
स्वर की जादूगरी के साथ
प्रान्त के अदना मन्त्री के सम्मान में
राग जै-जैवन्ती गा रहा है
सभागार में संगत करते हुए कुछ सिर
तीन ताल में निबद्ध रचना की तरह
लगातार हिल रहे हैं
मैं इस समय अपने लिए
तुरन्त एक जम्हाई की
ज़रूरत महसूस करता हूँ
एक लम्बी, खुरदरी
स्पष्ट और अशिष्ट जम्हाई की
जो हिलते हुए सिरों पर गिरे
और तोड़ दे उनकी लय को।