भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जय भव-भामिनि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग ईमन-ध्वनि कीर्तन-ताल कहरवा)
जय भव-भामिनि जय भव-तोषिणि जय जग-पोषिणि जननी जय।
जय मधुमालिनि जय जग-पालिनि वैभवशालिनि जननी जय॥
जय सुख-दायिनि वाञ्छित-दायिनि, मंगलदायिनि जननी जय।
जय अघ-नाशिनि विघ्र-विनाशिनि अन्नपूर्णा जननी जय॥