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जरा सी बात पे इतने वबाल करता है / सिया सचदेव
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जरा सी बात पे इतने वबाल करता है
वो इस क़दर मेरा जीना मुहाल करता है
वो बाज़ आएगा ऐ दिल न अपनी आदत से
तू किस उम्मीद पे शौक़-ए-विसाल करता है
पशेमां ख़ुद भी है वो अपनी बेवफ़ाई पे
वो ज़ुल्म करता है और फिर मलाल करता है
पसीना बनके जो उभरा है मेरे माथे पर
यही लहू मेरी रोज़ी हलाल करता है
हमेशा उसने नवाज़ा हैं दर्द-ओ-ग़म से मुझे
वो मेरे शौक का कितना ख़याल करता है
सिया मैं क्या कहूँ अब और उसके बारे में
वो नेकियाँ भी बड़ी बेमिसाल करता है