भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जले पेड़ों की नुमायश / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खबर है
कल से शहर में
जले पेड़ों की नुमायश है लगी
 
हाँ, वही ये पेड़
जो पहले हरे थे
और देते छाँव थे ये
हर किसी को - बावरे थे
 
टिक गईं
चिनगारियाँ इनके तले थीं
समझ पाए ये नहीं थे यह ठगी
 
दूर से आती हवाओं से
भड़ककर
चढ़ गईं चिनगारियाँ थीं
पेड़ के सीधे तनों पर
 
रात-भर
जलती रहीं थीं पत्तियाँ
हाँ, वही जो थीं रहीं रितु की सगी
 
अब नुमायश में धरे हैं
काठ झुलसे
कह रहे सब - आये हैं ये तो
पुरातन वृक्षकुल से
 
देखिये तो
राख के ये पुण्ड धारे
कर रहे हैं लोग इनकी बंदगी