जहर से मरी मछलियाँ / लक्ष्मीकान्त मुकुल
मछुआरे झुंड में
कतार बाँधे जाते हैं नदी की ओर
हाथों में बंसी, कंधों पर जाल-कुरजाल लिए
उनके आगम की धमक से
छटपटाती भागने लगती हैं मछलियाँ
मछलियाँ हार बाँधे
निर्भेद घूमती हैं अपने जल-संसार में
नदी का तलछट, किनारा, लहरें, धार की भंवर
जैसे क्रीड़ा स्थलों में
घोंघे, केकडे, कछुए, सीपों से दोस्ती करती हुई
नदी का पानी मथ जाता है मछलियों की पतवारों से झींगा सतह पर फुदकती हुई पहुँचती है किनारा लचकदार हड्डियों वाली पोठिया छू लेती है बीच नदी की तली
बरारी, टेंगर, गोंजी, गरई, बैकर मछलियाँ उछड़ती हैं पानी के तेज बहाव के विरुद्ध
कतला, सेवरी, वाम, सिंधी मछलियाँ नदी के उद्गम से मुहाने तक बार-बार करती हैं यात्राएँ
चांदनी रात की झीनी रोशनी के बीच
बाढ़ से लबलाबायी नदी में
रोहू, नैन, बेंदूला, पतया मछलियाँ चढ़ती जाती है पानी की धार में
जैसे लंबे बांस के सहारे लताएँ छू लेती है आकाश
मीठे पानी वाली इन मछलियों पर
घात लगाए बैठे हैं मछुआरे
जो फंसाते हैं उसे वंशी-काटा से
घेरते हैं जाल-कुरजालों को लेकर
बांस-खूटें-चांचरों से नदी को
बेंडकर खड़ा कर देते हैं चिलवन
इनके कैदों से भागती फिरती हैं मछलियाँ
बचाती हुई अपनी स्थानीय प्रजातियाँ
जैव विविधता कि अनमोल वनस्पतियाँ
नदी से जुड़ा अपना पूरा पारिस्थितिकी तंत्र
नदियों को हीड़ने वाले शिकारी मछुआरे
बदल दिए हैं अपनी शातिर चालें
वे नदी में लगा रहे हैं तार से करंट
पानी में फेंकने लगे हैं कीटनाशक दवाइयाँ
बीच लहरों में करते हैं डायनामाइट का विस्फोट
मछली मारने के तरीके बदलते
नदी में जाल की जगह उड़ेलने लगे हैं जहर बोतलों से
जो जलधारों में पसरता फैलने लगता है बहाव में
मछलियों के वंश-वृक्षों का नाश करता हुआ
मृत मछलियों की दुर्गंध से भर जाती है नदी
बिलखती हुई रीठा, बागल, हीले जैसी छोटी
मछलियों के लुप्त प्राय होने के किस्सों को याद करती हुई
धमाचौकड़ी मचाते हैं मछुआरे
नदी की पानी में बिनते हैं मरी हुई मछलियाँ
उल्लसित चेहरे लिए जैसे जीत गए हों सारे मैदान उनकी पत्नियाँ सींझाएंगी रसोई की कड़ाही में
जहर से मरी जहरीली इन मछलियों को
अघाएगा पूरा परिवार इस अद्भुत व्यंजन से।